राजस्थान सरकार ने महंगी की केंद्र के लिए जमीन
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केंद्र सरकार द्वारा राजस्थान की परियोजनाओं को अटकाने के जवाब में प्रदेश की गहलोत सरकार ने केंद्र सरकार, उसकी एजेंसियों और केंद्रीय उपक्रमों के लिए जमीन महंगी कर दी है। केंद्रीय एजेंसियों को अब राजस्थान सरकार के विभागों की तरह सस्ती जमीन नहीं मिलेगी। प्रदेश के नगरीय विकास और आवासन (यूडीएच) विभाग ने शहरी क्षेत्र में जमीन आवंटन नीति-2015 में बदलाव करते हुए नए प्रावधान लागू कर दिए हैं। नई नीति में केंद्र के लिए जमीन को महंगा कर दिया है।
शहरी क्षेत्र में जमीन आवंटन के लिए पिछली वसुंधरा राजे सरकार ने 2015 में नई नीति बनाई गई थी। उस नीति में अब गहलोत सरकार ने कई बदलाव करते हुए शहरी क्षेत्र में जमीन आवंटन के नए प्रावधान शामिल किए हैं। इस नीति के बिंदु 9 में सरकारी संस्थाओं को जमीन आवंटन करने का प्रावधान था। संशोधित जमीन आवंटन नीति में केंद्र सरकार के लिए जमीन महंगी करने के दो नए प्रावधान जोड़े गए हैं। ऐसे में केंद्र सरकार के विभागों को रिजर्व प्राइस के साथ 20 फीसदी अतिरिक्त देना होगा, जबकि केंद्र सरकार के अधीन निगम को रिजर्व प्राइस के साथ 150 फीसदी अतिरिक्त राशि देनी होगी।
इस प्रकार केंद्र सरकार के विभागों को जमीन की आरक्षित दर रिजर्व प्राइस का 15 प्रतिशत पर या डीएलसी दर और उस पर 20 प्रतिशत अतिरिक्त पर जमीन आवंटित की जाएगी। केंद्र सरकार के बोर्ड, निगमों, केंद्रीय उपक्रमों को अब आरक्षित दर की 150 प्रतिशत राशि और उसका 15 प्रतिशत या डीएलसी दर का 150 प्रतिशत और 20 प्रतिशत अतिरक्ति पैसा जोड़कर जमीन आवंटित की जाएगी। राजस्थान सरकार के विभागों के साथ पहले केंद्र के विभागों के लिए भी राज्य सरकार मुफ्त में और केंद्रीय बोर्ड, निगमों के लिए रियायती दर पर जमीन उपलब्ध करवाती रही है। शहरी क्षेत्रों के लिए जमीन आवंटन नीति में बदलाव को जून में कैबिनेट ने मंजूरी दी थी, जिसके बाद नगरीय विकास विभाग ने नई जमीन आवंटन नीति लागू कर दी।
उल्लेखनीय है कि पिछले यूपीए राज में राजस्थान के लिए मंजूर बड़े प्रोजेक्ट रद्द होने से केंद्र व राज्य के बीच टकराव बढ़ा है। भीलवाड़ा में 2013 में मेमू कोच फैक्ट्री का शिलान्यास होने के बाद पिछले साल केंद्र सरकार ने इस प्रोजेक्ट कर रद्द कर दिया, वहां राज्य सरकार ने बड़ी जमीन केंद्र को दी थी। इसी तरह डूंगरपुर-बांसवाड़ा-रतलाम रेल प्रोजेक्ट भी रुका हुआ है। ईस्टर्न राजस्थान कैनाल प्रोजेक्ट को गहलोत सरकार राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने की मांग कर रही है। नए फेडिंग पैटर्न में केंद्रीय योजनाओं में राज्यों पर मैचिंग ग्रांट का ज्यादा भार पड़ने पर भी केन्द्र व राज्य सरकारों में मतभेद हैं। केंद्रीय करों, जीएसटी में राज्य की हिस्सा राशि समय पर नहीं मिलने का मुद्दा भी टकराव का एक कारण बना हुआ है।