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राजस्थान का काउंट डाउन शुरू – हैमंत गौड़

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राजस्थान की राजनीति में भूचाल के संकेत मिलने शुरू हो गए हैं। पंजाब में अमरिंदर के वर्चस्व को खत्म करके राहुल गांधी ने कॉंग्रेसियो को स्पष्ट सन्देश दे दिया था कि अब कांग्रेस में व्यक्तिवादी वर्चस्व नही चलेगा। इसकी परिणीति के बाद राजस्थान में भी उठापटक होगी ये अनुमान तो राजनीति के पंडित लगा रहे थे लेकिन ये इतनी जल्दी हो जाएगा इसकी उम्मीद नही थी।
हाल ही में सचिन पायलट की प्रियंका व राहुल गांधी से लम्बी बैठक चली। सूत्रों की माने तो कांग्रेस आलाकमान अब सामंजस्य बैठने की रणनीति छोड़ फैसला करने का मानस बना चुका है।
राहुल गांधी की टीम के एक युवा कार्यकर्ता से मेरी मुलाकात मई माह में हुई थी। लॉक डाउन के उस समय मे उनसे बड़ी फुर्सत से चर्चा हुई। जमीन से जुड़े ये नेता nsui, युवा कांग्रेस में भी शीर्ष पदों पर रहे। इनके ग्रास रूट से जुड़े होने व संगठन के प्रति समर्पितता के चलते इनको कई राज्यो में प्रभारी बनाकर भी भेजा गया।
इन्होंने मई में हमारी मीटिंग के दौरान ही बताया था कि अब कांग्रेस में आमूलचूल परिवर्तन होंगे। व्यक्तिवादी वर्चस्व की राजनीति कांग्रेस में अब नही चलेगी इसको लेकर राहुल गांधी ने स्पष्ट निर्देश दे दिए हैं।
अब इसकी शुरुआत पंजाब से हो चुकी है जिसमे राहुल गांधी ने कांग्रेसीयो को बड़ा स्पष्ट सन्देश दे दिया है।
राहुल गांधी ने कांग्रेस में नयी जान फूंकने के उद्देश्य से कड़े निर्णय लेने शुरू कर दिए हैं और इसी कड़ी में तत्कालिक लाभ की जगह वे दीर्घकालिक ठोस परिणामों को ज्यादा तवज्जो देने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। वरिष्ठ नेता जो कांग्रेस को बपौती मांन खुद के वर्चस्व की राजनीति करते रहे हैं उनकी विदाई अब तय लग रही है। राहुल गांधी ये भी अच्छी तरह जानते हैं कि हो सकता है वरिष्ठ नेताओं के इस वर्चस्व को तोड़ने और युवाओं की ज्यादा भागेदारी सुनिश्चित करने की इस प्रक्रिया में कांग्रेस को कुछ तात्कालिक नुकसान हो सकता है लेकिन इसके दूरगामी परिणामों के प्रति वे पूर्ण आशान्वित है।
राजस्थान की बात करें तो यहां भी सत्ता से लेकर संगठन तक आमूलचूल परिवर्तन तयशुदा होगा।
अशोक गहलोत हालांकि गांधी परिवार के प्रति पूर्ण समर्पित रहे हैं या वो ऐसा प्रदर्शित करने में कामयाब रहे हैं जिसके फलस्वरूप उन्हें गांधी परिवार का वरदहस्त भी मिला और सत्ता का शीर्ष भी। अब जब कांग्रेस आलाकमान अशोक गहलोत के राजनीतिक अनुभवों को युवा पीढ़ी के मार्गदर्शन के उपयोग में लेना चाहता है तो शायद गहलोत सत्ता के शीर्ष से मोहभंग या ये विरासत अपने ही परिवार को देने का लोभ नही छोड़ पा रहे हैं।
एक ओर घटनाक्रम हुवा जो कि बड़ी ही शांति के साथ किया गया कि बीकानेर में रॉबर्ट वाड्रा की जमीन खरीद फरोख्त की कथित धांधली का मामला जो कोर्ट में विचाराधीन है जो कि अब तक ठंडे बस्ते में डाला हुवा था, पंजाब के सियासी घटनाक्रम व राजस्थान में संभावनाओ के चलते फ़ास्ट ट्रेक पर आ गया। राजनैतिक पंडित इसे दवाब की राजनीति मान रहे हैं जो दिल्ली में राजस्थान के संदर्भ में हो रहे निर्णयों को प्रभावित करने के उद्देश्य से की गई थी।
राहुल गांधी की टीम के सदस्यों की माने तो ये घटनाक्रम आत्मघाती कदम हो गया है। राहुल गांधी अब किसी भी सूरत में दबाव में आकर सामंजस्य बैठाने की अपेक्षा कड़े कदम उठाने के पक्ष में ज्यादा दिख रहे हैं …

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